परासरण की क्रिया को सर्वप्रथम ऐबे नॉलेट ने प्रेक्षित किया। जब दो भिन्न सान्द्रता के विलयनों को अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली द्वारा पृथक् किया जाता है, तो कम सान्द्रता के विलयन से विलायक के अणु इससे निकलकर अधिक सान्द्रता के विलयन में तब तक पहुँचते रहते हैं जब तक झिल्ली के दोनों तरफ इसकी सान्द्रता समान न हो जाए।
परासरण किसे कहते हैं?
“विलायक का कम सान्द्रता वाले विलयन से अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर अर्द्धपारगम्य झिल्ली में से प्रवाह, परासरण कहलाता है।”
नोट :— परासरण में विलायक के कण अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली के दोनों ओर गति करते हैं, परन्तु तनु विलयन से सान्द्र विलयन (या विलायक से सान्द्र विलयन) की ओर प्रवाह अधिक होने के कारण कुल स्वत: प्रवाह का प्रभाव ही दृष्टिगोचर होता है।
चूँकि कम सान्द्रता वाले विलयन या शुद्ध विलायक का वाष्प दाब अधिक होता है, इसलिए विलायक के अणु कम सान्द्रता वाले विलयन या शुद्ध विलायक से अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर जाते हैं।
विलायक के अणुओं के प्रवाह की दिशा |
उदाहरण- अण्डे में दो खोल या आवरण (Covers) होते हैं। बाह्य खोल मुख्यतया कैल्सियम कार्बोनेट का बना होता है तथा भीतरी खोल एक पारदर्शक अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली के रूप में होता है। अण्डे को तनु HCI में डालने पर उसका बाह्य खोल उतर जाता है तथा भीतरी खोल प्रभावित नहीं होता है। बाह्य खोल को उतार कर एक अण्डे को आसुत जल में तथा दूसरे अण्डे को नमक के
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